जम्मू-कश्मीर पर वार्ता प्रक्रिया को बढ़ाने के लिए छोटे-छोटे कदमों की वकालत करते हुए केंद्रीय वार्ताकारों ने कहा है कि राज्य में सभी विचारों के लोगों से बातचीत करने के अतिरिक्त उनके पास देश में सभी पक्षों को विश्वास में लेने की एक बड़ी जिम्मेदारी है।
यदि देश के राजनीतिक मत का नेतृत्व करने वाली संसद को विश्वास में नहीं लिया जाता तो प्रयास व्यर्थ हो जाएगा। यह एक बड़ा दायित्व है, लेकिन इसे किया जाना है। समग्र और स्थाई समाधान ढूंढ़ने के प्रयास के तहत कश्मीर में समाज के विभिन्न तबकों के साथ बातचीत में वार्ताकार दल ने कश्मीर पर राजनीतिक मतों को सुना और लोगों के सामने रोजाना आने वाली स्वतंत्र होकर न घूम पाने या बच्चों के लिए दूध न मिल पाने जैसी समस्याओं के बारे में भी जाना। अपना मानना है कि टीम के राज्य के पहले दौरे के बाद किसी को भी बड़े कदमों की उम्मीद नहीं करनी चाहिए । यह समूह राज्य में स्थिति में सुधार के लिए केंद्र को सिफारिश करेगा। राज्य में हालत सुधारने के लिए तत्काल राजनीतिक बंदियों, पथराव करने वालों की रिहाई और कर्फ्यू हटाना शीर्ष प्राथमिकताओं में है। ध्यान रहे कि संसद द्वारा पारित एक प्रस्ताव [जम्मू कश्मीर के पाकिस्तानी कब्जे वाले हिस्से को वापस लेने के लिए] पाकिस्तान को एक पार्टी बना देता है। आदर्श रूप से कश्मीर मुद्दे का समाधान पाकिस्तान के कब्जे वाले क्षेत्र सहित राज्य के सभी भागों के लोगों का स्वीकार्य होना चाहिए।
वहीं, कश्मीर के लिए केंद्र द्वारा नियुक्त वार्ताकार जम्मू-कश्मीर विधानसभा में 2000 में पारित स्वायत्तता संकल्प के मुद्दे पर भाजपा नेतृत्व किस तरह की धारणा रखता है यह जानना भी जरुरी है । क्योंकि केंद्र में भाजपा के नेतृत्व वाली राजग सरकार ने उसे खारिज कर दिया था। इस संकल्प के ख़ारिज होने की वजह भी सार्वजनिक होनी चाहिए। उस समय विधानसभा में नेशनल कांफ्रेंस को करीब दो-तिहाई बहुमत हासिल था और सदन ने जुलाई 2000 में वह संकल्प पारित किया था, लेकिन केंद्र सरकार ने उसे खारिज कर दिया था, जबकि नेशनल कांफ्रेंस उस समय राजग सरकार में शामिल थी।
फिर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह द्वारा 2006 में गठित पांच कार्यकारी समूह की सिफारिशों की कार्रवाई रिपोर्ट [एटीआर] का क्या हुआ देश यह भी जानना चाहेगा .यहाँ ये सब सन्दर्भ गिनाने का खास मकसद है। वह यह कि क्या कश्मीर के लिए नियुक्त वार्ताकारों को उपरोक्त सभी बातों से परिचित करा दिया गया था? यदि हाँ तो वे जानकारियां क्या है और यदि नहीं तो क्यों? सरसरी दृष्टी से देखने पर लगता है कि कश्मीर पर बातचीत के लिए आधी अधूरी जानकारी के साथ वार्ताकार वहां भेजे गए। वे किससे बात करेंगे और बात चीत का मसौदा कैसे व कौन तय करेगा तथा उस की वैधता व विश्वसनीयता , स्वीकार्यता , सन्दर्भ , संकल्पना, सार्थकता एवं सर्व ग्राह्यता के मान दंड क्या हैं /होंगे कुछ ऐसे प्रश्न है जिनका उत्तर दिया जाना चाहिए।
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