Friday, June 12, 2009

भाजपा में हो रही

देखो जूतम पैजार

जसवंत के बाद यशवंत ने

कर डाला है वार

दे इस्तीफा पदों से

उछाला एक सवाल

किसके कारण हुआ है

पार्टी का ऐसा हाल

कैसे पी एम् बनोगे

बोलो लाल अडवाणी

या चाहिए आपको

चुल्लू भर पानी

सपने में उनको दिख गया

रात में प्यारा चोटी

सुबह उठे तो देखा

गीली हो गई लंगोटी

परेशां हो भूरे बालों पे

अपना हाथ घुमाया

यस सर कहते हुए तभी

रीवा वाला आया

बीरबल भी क्या करे

चोटी है मायावी

aइसा tआला है sala

मिले न जिसकी चावी

चुनाव बहुत नजदीक हैं
अवसर अच्छा जान
भाषावादी हो रहे
लीडर सारे महान
अस्सी फीसद चाहिए
भूमिपुत्र मजदूर
पता जरा कीजिये
kaun कहाँ मजबूर





Thursday, June 4, 2009

स्पीकर बन गई

पहली महिला यार

लेकिन रुक न पायेगी

कभी जूतम पैजार

पहले दिन ही भीड़ गए

शरद से यादव लालू

संसद में हो गई

गली गलोज cहलू

आगे आगे देखिये

आने वाले नज़ारे

मीरा सर पीटेंगी

शोर करेंगे sआरे

Monday, June 1, 2009

कभी कभी यह विचार भी करना चाहिए की एक पत्रकार के लिए क्या महत्वपूर्ण है.यह प्रश्न इसलिए भी आवश्यक हो जाता है जब स्वाभिमान और आडम्बर में किसी एक को चुनने की चुनौती हो। आज मीडिया का अपना एक अलग किस्म का नशा है। जो भी किसी मीडिया से जुड़ा है वह ख़ुद को किसी बड़ी हस्ती से कम नही समझता। भले ही उस संस्थान विशेष मे इज्जत की रोज धज्जियाँ उडाई जाती हो मगर मीडिया के gलैमर के मोह में वह हर अपमान को बर्दाश्त करते हुए अपने काम मे लगा रहता है अथवा उसकी अपनी निजी विवशताएँ उसे जहर के घूँट पीने को विवश कर देती हैं। प्रबंधन के हस्तक्षेप ने आज के पत्रकार की करने मे कोई कसार नही छोड़ी है। कुछ पत्रकार रोज अपनी हत्या होते देखते है पर विवशताओं की पट्टी ने उनके adharसी दिए है । जो अपने आपको बचने मे कामयाब होने की हिम्मत करते है वे संसथान से बाहेर का रास्ता नाप लेते है । मैंने भी दुसरे विकल्प को चुना। आज मै ख़ुद को मुक्त समझता हूँ.