गुजरात के स्थानीय निकाय चुनावों में एक बार फिर मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी का जादू चला है। अहमदाबाद, वड़ोदरा, सूरत, भावनगर, राजकोट और जामनगर में भारतीय जनता पार्टी ने स्पष्ट बहुमत हासिल किया है।
जाहिर है कि अब मोदी और उनके आलोचकों को कुछ बोलते नहीं बन रहा होगा। महत्वपूण यह है कि ये चुनाव तब हुए जब मोदी और गुजरात सरकार सोहराबुद्दीन मुठभेड़ तथा इशरत जहाँ मामलों को लेकर देश भर में विपक्ष की aआलोचनाओं के निशाने पर थी। परिणाम एक बार फिर भाजपा विशेषकर मोदी के पक्ष में गए हैं। पूरी ईमानदारी से यदि विश्लेषण किया जाए तो अब यह सत्य स्वीकार कर लिया जाना चाहिए कि मुसलमानों और भाजपा के बीच गुजरात में दूरियां कम हुई हैं। अब इसी बहाने यह भी म्स्वीकर किया जाना चाहिए कि बार-बार भेड़िया आया की रत लगा कर आप किसी को अधिक मूर्ख नहीं बना सकते । गुजरात की जनता जिनमे मुस्लमान भी शामिल है , ने वहां विकास को वोट किया है न कि किसी नरेन्द्र मोदी या पार्टी विशेष को। अपने विरोधियों के तमाम वारों को झेलने के वावजूद मोदी हर बार और ज्यादा मजबूत होकर उभरते हैं तो इसके पीछे उनकी विकासोन्मुखी सोच और गुजरात राज्य की जनता को समग्र गुजराती जनता के तौर पर देखना तथा तदनुसार ही राज्य की नीतियों का निर्धारण करना प्रमुख है। किसी भी राज्य के विकास में यह तत्त्व बहुत महत्वपूर्ण है कि जब राज्य की जनता के लिए विकास की योजनायें बने जाएँ तब बिना किसी भेदभाव के उन पर अमल हो और उनका लाभ राज्य के प्रत्येक नागरिक को सामान रूप से मिले। मोदी यह कम करने में सफल रहे हैं। इसलिए जीत का सेहरा उनके ही सर पर बंधा जाए तो किसी को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए। यदि होती है तो यह उसकी अपनी समस्या है लेकिन आत के युवा भारत का मतदाता गड़े मुर्दे उखाड़ने में विश्वास नहीं करता। आखिर आज किसी १८-२० साल के बच्चे को बार-बार बाबरी मस्जिद या राम जन्म भूमि की कहानी सुनाने से उसका क्या भला होना है? आज का युवा शांति चाहता है। आप उसे बार-बार भावनात्मक रूप से इस्तेमाल नहीं कर सकते। यही युवा आपका वोटर भी है जिसे अपने आस पास विकास चाहिए न की थोथे आश्वासन। साथ ही उसे एक धर्मं विशेष की चारदीवारी से भी मुक्ति चाहिए। गोधरा- गोधरा की रत लगाकर मोदी को मुस्लिम विरोधी साबित करने की कोशिश हर बार यदि नाकाम होती है तो इसका एक ही कारन है कीगुजरात का मुस्लिम मोदी को अपना दुश्मन नहीं मानता । नितीश कुमार को भी समझ आना चाहिए।
जाहिर है कि अब मोदी और उनके आलोचकों को कुछ बोलते नहीं बन रहा होगा। महत्वपूण यह है कि ये चुनाव तब हुए जब मोदी और गुजरात सरकार सोहराबुद्दीन मुठभेड़ तथा इशरत जहाँ मामलों को लेकर देश भर में विपक्ष की aआलोचनाओं के निशाने पर थी। परिणाम एक बार फिर भाजपा विशेषकर मोदी के पक्ष में गए हैं। पूरी ईमानदारी से यदि विश्लेषण किया जाए तो अब यह सत्य स्वीकार कर लिया जाना चाहिए कि मुसलमानों और भाजपा के बीच गुजरात में दूरियां कम हुई हैं। अब इसी बहाने यह भी म्स्वीकर किया जाना चाहिए कि बार-बार भेड़िया आया की रत लगा कर आप किसी को अधिक मूर्ख नहीं बना सकते । गुजरात की जनता जिनमे मुस्लमान भी शामिल है , ने वहां विकास को वोट किया है न कि किसी नरेन्द्र मोदी या पार्टी विशेष को। अपने विरोधियों के तमाम वारों को झेलने के वावजूद मोदी हर बार और ज्यादा मजबूत होकर उभरते हैं तो इसके पीछे उनकी विकासोन्मुखी सोच और गुजरात राज्य की जनता को समग्र गुजराती जनता के तौर पर देखना तथा तदनुसार ही राज्य की नीतियों का निर्धारण करना प्रमुख है। किसी भी राज्य के विकास में यह तत्त्व बहुत महत्वपूर्ण है कि जब राज्य की जनता के लिए विकास की योजनायें बने जाएँ तब बिना किसी भेदभाव के उन पर अमल हो और उनका लाभ राज्य के प्रत्येक नागरिक को सामान रूप से मिले। मोदी यह कम करने में सफल रहे हैं। इसलिए जीत का सेहरा उनके ही सर पर बंधा जाए तो किसी को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए। यदि होती है तो यह उसकी अपनी समस्या है लेकिन आत के युवा भारत का मतदाता गड़े मुर्दे उखाड़ने में विश्वास नहीं करता। आखिर आज किसी १८-२० साल के बच्चे को बार-बार बाबरी मस्जिद या राम जन्म भूमि की कहानी सुनाने से उसका क्या भला होना है? आज का युवा शांति चाहता है। आप उसे बार-बार भावनात्मक रूप से इस्तेमाल नहीं कर सकते। यही युवा आपका वोटर भी है जिसे अपने आस पास विकास चाहिए न की थोथे आश्वासन। साथ ही उसे एक धर्मं विशेष की चारदीवारी से भी मुक्ति चाहिए। गोधरा- गोधरा की रत लगाकर मोदी को मुस्लिम विरोधी साबित करने की कोशिश हर बार यदि नाकाम होती है तो इसका एक ही कारन है कीगुजरात का मुस्लिम मोदी को अपना दुश्मन नहीं मानता । नितीश कुमार को भी समझ आना चाहिए।
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