नीले पीले बैंगनी हारे बसंती लाल।
हर रंग में हैं रंगे हर गोरी के गाल॥
नस नस में हो सनसनी अंग अंग में आग ।
पवन करे अठखेलियाँ समझो आया फाग ॥
यादें हमको ले चलीं फिर से वही खदेड़ ।
ककैया ईटों की गली मौलसिरी का पेड़॥
दिशा सिन्दूरी हो गयी मोर पंखिया शाम ।
मन के पंछी को नहीं फिर भी कहीं विराम॥
Thursday, February 17, 2011
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