Monday, February 1, 2010
इन दिनों मुंबई को लेकर बहस छिड़ी है की आखिर मुंबई किसकी है? यह सवाल नया नहीं है .हर बार मुंबई को राजनीतिक कारणों से केंद्र में रखकर बयानबाज़ी की जाती रहीं है । शिवसेना जैसी क्षेत्रीय पार्टियाँ तो ऐसे भावनात्मक मुद्दों की पहली दावेदार होती है। कितने अफ़सोस की बात है की आजाद हिंदुस्तान में हर हिन्दुस्तानी भाषा; क्षेत्र;वर्ण आदि के नाम से अलग अलग टुकड़ों में बटा है। आज एक बार फिर भाई लोग मुख्गर्जना कर रहे है। सवाल यह है की आखिर मुंबई का असली मालिक कौन है? मुंबई किसकी है? जो लोग इसे अपना बताने का दावा कर रहे है उन्हें यह हक़ किसने दिया राजनीतिक गुंडागर्दी का यह सबसे वीभत्स रूप है । आप समर्थ है तो इसका अर्थ यह है की आप जो कहे वाही सच , बाकि सब गलत। जबकि अगर मुंबई शिवसेना या मनसे की होती तो विधानसभा चुनावो के ये नतीजे साफ़ इशारा करते है की मुंबई सहित महाराष्ट्र पे किसका अधिकार है। मगर जिन्हें धृतराष्ट्र जैसा दृष्टिदोष होता है उनके लिए इस तार्किक बहस का कोई अर्थ नहीं है। अपन इस ब्लॉग पर सिर्फ इसलिए सर खपा रहे है की कोई तो इन आँख वाले अन्धो कोसाही रास्ता दिखाए। कित्नस हास्यास्पद है की आस्ट्रेलिया में की स्थिति में चीख पड़ने वाले इस देश के वीर लोग महाराष्ट्र.;अथवा देश के अन्य भागो में दुसरे प्रान्तों से आये लोगो पर हुए अत्याचारों के खिलाफ मौन साध जाते है। क्या यह नस्लवाद नहीं .
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