Thursday, January 21, 2010

एक और दुकान

बाज़ार के बड़े खिलाडियों की नज़र taxi वालों पर पड़ी और महाराष्ट्र की सरकार ने रास्ता बनाने की कवायद भी शुरू कर दी। सरकार ने फ़रमाया की अब किसी भी taxi का नया licence लेने के लिए सम्बंधित व्यक्ति का मराठी भाषा का ज्ञान और राज्य में कम से कम १५ वर्ष kअ निवासी होना जरुरी होगा। इसके पक्ष में सरकार ने १९६४ के नियमो का हवाला देते हुए कहा कि १९८९ tअक्सी का परमिट लेने के लिए भी यही शर्त थी। अब केवल उस पर कडयी से अमल किया जाएगा। ज़ाहिर है कि इस सरकारी फलसफे के पीछे एक सोची समझी राजनीतिक जोड़ घटा का गणित है। सरकार यह दिखाना चाहती है की उसे मराठी और मराठी भाषा से कितना प्यार है। शायद इसके पीछे कुछ और भी हेतु हो मगर इतना तो साफ़ है कि यह कोई राजनीतिक स्टंट

नहीं है। तो फिर क्या हो सकता है इसे जानने कि जरुरत है। दर असल स्थानीय होने कि शर्त के पीछे के हेतु अलग हैं। मुंबई में करीब ५० हज़ार लोग taxi परमिट धारक हैं। इसके अलावा करीब ८ हज़ार लोग कूल taxi के चालक अथवा मालिक हैं। दो हज़ार लोग निजी taxi के धंधे में व्यस्त हैं। ७४ महिला taxi भी मुंबई में सड़कों पर हैं। सरकार जिस मराठी भाषा कि जानकारी जरुरी होने कि शर्त taxi चालकों व मालिकों पर लाद रही है उसकी सच्चाई यह है कि बमुश्किल १५ फ़ीसदी लोग ऐसे हैं जो मराठीभाषी हैं और taxi के धंधे से जुड़े है। महाराष्ट्र के परिवहन मंत्री राधाकृष्ण विखेपाटिल के मुताबिक कुछ स्थानीय और कुछ बाहर के आपरेटर्स चाहते हैं कि taxi के धंधे में उतरें। इस लिए सरकार ने नए परमिट के लिए न्यूनतम एक लाख रुपये प्रति परमिट नीलामी मूल्य रखा है। यही वह विन्दु है जहाँ सरकार की नीयत पर शक होता है। ज़रा सोचिये एक लाख का परमिट , दो से तीन लाख की taxi अर्थात कम से कम ४ लाख रुपये हों तभी कोई व्यक्ति taxi खरीदने के बारे में सोचे। ऊपर से राज्य निवासी हिने कि शर्त । सभी जानते है कि सामान्य मेहनत मजदूरी करने वाला वर्ग निवासी प्रमाणपत्र जैसी औपचारिकताएं किस हद तक पूरी कर पायेगा या ऐसी अनिवार्यताएं पूरी करने कि उसकी सामर्थ्य है। तो जो ८ हज़ार नए taxi परमिटों कि रेवड़ी सरकार ने सजायी है उसे लूटने के लिए पहले ही चोरो की फ़ौज तैयार है। बड़े खिलाडी कार्पोरेट की शक्ल में मुंबई की सड़कों पर बिछे नोट बटोरने के लिए गिध्ध दृष्टि लगाये बैठे है। परमिटों की नीलामी में वे ही सबसे आगे होंगे और हर परमिट पे उनका ही कब्ज़ा होगा। बाद में in परमिटों की भी कालाबाजारी होगी और इस कमाई में वे सभी लोग साझीदार होंगे जो इस समय taxi के धंधे में स्थानीयता का तड़का लगा रहे हैं। मजाक तो यह है की सरकार में शामिल तमाम लोग एक लम्बी ख़ामोशी अख्तियार किये बैठे हैं। यद्यपि बाद में मुख्यमंत्री ने ऐसी किसी भी यजन से इंकार किया मगर देर सबेर सरकार अपने आकाओं के लिए taxi परमिट की दुकान खलेगी जरूर इसमें संदेह नहीं है.

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