सिर्फ रोने से काम नहीं होता
हर जुबां पे कलाम नहीं होता
यूँ तो अब भी बहुत हैं कौशल्यायें
हर कोख में मगर राम नहीं होता
कुछ तो मजबूरी रही होगी
यूँ ही कोई नमकहराम नहीं होता
ये चलकर नहीं रुका करता
समय का कोई विराम नहीं होता
अजय को पत्थर ही समझना लेकिन
हर पत्थर सालिग्राम नहीं होता
Sunday, January 16, 2011
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